डा. प्रीति जिंदल लुधियाना में मीडिया से बात करते हुए |
लुधियाना, 25 मई 2018 (हार्दिक कुमार): नि:सन्तान हैं और इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) अपनाने से कतरा रहे हैं। कहीं बच्चा पैदाइशी विसंगतियों के साथ पैदा ना होए या फिर कहीं जुड़वा बच्चे ना हो जाएं या कही गर्भपात ना हो जाए - आईवीएफ को लेकर ऐसी तमाम चिंताएं दम्पत्तियों के मन में रहती हैं। लेकिन अब इन चिंताओं से मुक्त होने का वक्त आ गया है। चिकित्सा विज्ञान में हुई तरक्की ने सन्तान प्राप्ति की इन बाधाओं का हल खोज निकाला है।
इस नवीनतम तकनीक का नाम है प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (पीजीएस)। और तो और, ये नवीनतम सुविधा अब आपकी पहुंच में भी है। मोहाली स्थित द टच क्लिनिक की जानी-मानी आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. प्रीति जिंदल के निरंतर प्रयासों की बदौलत नि:सन्तान दम्पत्तियां इस तकनीक का फायदा उठा सकती हैं, और वो भी किफायती दामों में। दिल्ली से ऊपर, समूचे उत्तर भारत में ये सुविधा सिर्फ द टच क्लिनिक में ही मौजूद है। यहां एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए डा. प्रीति जिंदल ने बताया कि पीजीएस एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया है जिसमें सबसे सेहतमंद भू्रण ही इमप्लांट-समाविष्ट किए जाते हैं जिसकी मदद से सफल गर्भ और स्वस्थ शिशु प्राप्त होता है।
आईवीएफ से जुड़े जोखिमों के बारे में बताते हुए डा. जिंदल ने कहा, ‘इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) या टेस्ट ट्यूब बेबी नि:सन्तान दम्पत्तियों के लिए वरदान साबित हुआ है । लेकिन चिंता की बात ये है कि सबसे उत्कृष्ट दवाओं, उपकरणों और अत्याधुनिक केंद्रों के बावजूद सफलता की दर महज़ 30 से 40 प्रतिशत के इर्द-गिर्द घूमती है। इसका सबसे बड़ा कारण है आनुवांशिक तौर पर विकृत भू्रण। ‘ऐसे अनचाहे नतीजों से बचने में पीजीएस हमारी मदद करता है’, उन्होंने कहा।
इन नई स्क्रीनिंग तकनीक पर अधिक जानकारी देते हुए डा. जिंदल ने कहा, ‘पीजीएस या प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग एक जेनेटिक टेस्ट है जो ट्रांसफर किए जाने से पहले भू्रण पर किया जाता है। इससे विकृत भू्रण की पहचान होती और नतीजन सफल गर्भ की संभावना 50 फीसदी और इससे ऊपर बढ़ जाता ही। इसमें उन भू्रणों की पहचान होती है जिसमें क्रोमोज़ोम्स या गुणसूत्रों की संख्या सही होती है ताकी आईवीएफ टीम ट्रांस्पर के लिए स्वस्थ भू्रण चुन सकें’।
पीजीएस के फायदों पर विस्तार से बोलते हुए डा. जिंदल ने कहा, ‘पीजीएस गर्भधारण की संभावना को बढ़ाता है और साथ ही साथ गर्भपात के खतरों को भी कम करता है। सिर्फ एक ही भू्रण ट्रांसफर किया जाता है जिस्से जुड़वा बच्चों और उनसे जुड़े स्वास्थ्य-संबंधी खतरों से बचा जा सकता है। गर्भ धारण के लिए ज़रूरी आईवीएफ चरण भी कम हो जाते हैं, जिससे वक्त भी बचता है और खर्च भी’।
डा. प्रीति जिंदल ने उन लोगों में अनुर्वरता संरक्षण पर भी जोर दिया जिन्हें कैंसर है और कीमोथेरेपी की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, ‘ये बेहद ज़रूरी है कि हम लोगों को जागरूक कर उन्हें बताएं कि वो कैंसर का इलाज शुरू करने से पहले अपने अंडे और शुक्राणुओं को फ्रीज़ कर संरक्षित कर लें क्योंकि कीमोथेरेपी और रेडिएशन के नकारात्मक प्रभाव अपरिवर्तनीय होते हैं। एक बार जब मरीज़ का इलाज हो जाए तो उसके फ्रीज किए अंडे या शुक्राणुओं की मदद से उसे संतान की प्राप्ति हो सकती है।'
पीजीएस तकनीक आईवीएफ का चयन करने वाले सभी लोगों के लिए उपयुक्त है। सभी महिलाएं में आनुवांशिक तौर पर विकृत भू्रण उत्पन्न करने का खतरा बना रहता है। जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, ये खतरा और बढ़ जाता है। पीजीएस की सलाह खासकर उन मामलों में दी जाती है जहां महिलाओं की उम्र 35 वर्षों से ऊपर होए महिलाओं के दो से ज्यादा गर्भपात हुए हों, उन महिलाओं में जहां आईवीएफ दो से ज्यादा बार फेल हो चुका हो और उन मामलों में जहां शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता कम होती है।
आदर्श रूप से पीजीएस सभी आईवीएफ मामलों में की जानी चाहिएए लेकिन सीमित तकनीक, उपलब्धता और कीमत के चलते ये सुविधा आज सिर्फ चुनिंदा जगहों पर ही मौजूद है। द टच क्लीनिक ही उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा केंद्र है जहां ये सुविधा किफायती दामों में मुहैया कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि यह तकनीक उन जोड़ों के लिए भी उपयोगी है, जिनके अनुवांशिक रूप से असामान्य बच्चे हैं, जो मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण है और सामान्य जीवन का नेतृत्व नहीं कर सकते हैं।